जगदीश रत्तनानी
किसी भी माध्यम का कुशल उपयोग इस बात की समझ के अभाव में खतरनाक है कि इसका उपयोग क्यों किया जा रहा है और यह कहां ले जाएगा। आज की कांग्रेस के लिए यह सेवानिवृत्त नौकरशाहों से दूर रहने की चेतावनी होनी चाहिए। उसे भ्रष्टाचार रोकने के लिए पैनी नजर रखनी होगी। चाहे वह सत्ता में हो या न हो, लेकिन कांग्रेस को एक टीम बनाने के लिए अधिक युवा नेतृत्व और प्रतिबद्ध लोगों की आवश्यकता होगी ताकि पार्टी जीवंत रह सके।
जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ रहा है उसके मद्देनजर भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर बहुत कुछ पहले ही बदल चुका है। पहली बात, कांग्रेस पार्टी एक दशक से भी ज्यादा वक्त में पहली बार मतदाताओं के सामने अपनी राजनीतिक स्थिति को स्पष्ट रूप से पेश करने में सफल हुई है। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है जो पूरी तरह से वामपंथ के साथ चल रही है। सवाल यह नहीं है कि वह कितने डिग्री तक वामपंथ के साथ है परन्तु यह दिशा और स्थिति का सवाल ज्यादा है और बताता है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी किस स्थान पर खड़ी है।
कभी उदारीकरण और निजीकरण की समर्थक पार्टी से इस वक्त जो उभर कर सामने आ रहा है वह अब सामाजिक न्याय, धन-आय सम्बन्धी असमानता या श्रमिकों के अधिकारों के एजेंडे के साथ एक अनिश्चय की स्थिति वाला रवैया नहीं है। यह एजेंडे का स्पष्ट रूप से रखा जाना है। यह वामपंथ की ओर एक तेज मोड़ है जो हाल के समय में कभी स्पष्ट नहीं था जितना इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान बैंकों के राष्ट्रीयकरण के दौरान था। वर्तमान में मतदाताओं की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि पार्टी जनता की भावनाओं को समझ रही है और उसकी गतिविधियां राष्ट्र के मूड के अनुरूप है।
कांग्रेस के पुनरुद्धार के लिए इस प्रखर वैचारिक स्थिति के प्रति कटिबद्धता महत्वपूर्ण है जबकि कुछ लोग कहेंगे कि पार्टी परिस्थितियों से मजबूर हो गई है। इसके बावजूद ऐसा लगता है कि वामपंथ के प्रति इस झुकाव को नेतृत्व और काडर द्वारा पूरे दिल से गले लगाया गया है। कांग्रेस ने 4 जून को आने वाले परिणामों की घोषणा से बहुत पहले यह एक महत्वपूर्ण चुनाव किया है।
उल्लेखनीय है कि नारेबाजी और उम्मीद-सेटिंग के कारण विजयी के रूप में देखे जाने के लिए भाजपा को अपने 303 के पिछले आंकड़े को पार करना होगा वहीं इंडिया गठबंधन को जीत का दावा करने के लिए भाजपा को 272 से नीचे खींचना होगा। इस बात की संभावना को छोड़ दें कि इस समय कांग्रेस और/या इंडिया गठबंधन इन चुनावों में बहुत खराब प्रदर्शन कर रहा है या नहीं, लेकिन देश में एक ऐसी पार्टी है जो आने वाले दिनों में भारत की नीति तय करेगी। यह एक ऐसी भूमिका है जिसे कांग्रेस ने त्याग दिया था और जिसके कारण वह अप्रासंगिक हो गई थी। इसी ने 'क्याÓ, 'कैसे' और 'क्यों' की ठोस स्थिति में बंधी स्पष्ट राजनीतिक दिशा के अभाव में भाजपा के लिए जमीन छोड़ दी थी। इस निश्चित दिशा के बिना हमारे पास जो कुछ भी था वह भाजपा की सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार पर एक दंतहीन हमला था जिसमें दृढ़ विश्वास नहीं था और जो मतदाताओं की मंशा के अनुरूप कारगर नहीं है। बहरहाल अब कहानी बदल गई है।
कांग्रेस में एक दशक से आ रही गिरावट और केंद्रीय सत्ता में रहने के दौरान भी इसकी धीरे-धीरे हो रही गिरावट, नव-उदारवादी एजेंडे का नेतृत्व करने के लिए जानी जाने वाली पार्टी का अपरिहार्य परिणाम थी। हाल के दिनों में इसकी एकमात्र उपलब्धि 1991 के आर्थिक सुधार थे। ये सुधार भी परिस्थितियों के कारण मजबूरीवश किए गए थे। इन सुधारों ने एक ओर 'एनीमल स्प्रिट' (अर्थ व्यवस्था में, 'एनीमल स्प्रिट' शब्द बाजार मनोविज्ञान और स्वभावजन्य अर्थशास्त्र में उपयोग में आता है। 'एनीमल स्प्रिट' आत्मविश्वास, आशा, भय और निराशावाद की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो व्यक्ति या व्यक्ति समूहों की वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है और बदले में आर्थिक विकास को बढ़ावा या बाधित कर सकती है) को उजागर करने का प्रयास किया लेकिन दूसरी ओर इसने श्रमिकों के अधिकारों पर अंकुश लगाने तथा व्यापक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की ओर भी कदम बढ़ाए।
मजबूत शासन और कमजोर या गैर-मौजूद पुलिसिंग के अभाव या मिलीभगत के कारण यह भ्रष्टाचार सार्वजनिक क्षेत्र के आधिपत्य से निजी क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। मोटे तौर पर इन घटनाक्रमों ने आश्चर्यजनक रूप से भाजपा समर्थक धनी वर्गों के उदय को बढ़ावा दिया जिन्होंने वर्ग, जाति और स्थिति के मामले में अन्य मिश्रित कुलीन वर्ग के साथ गठबंधन करते हुए भाजपा को सत्ता में लाने के लिए मदद की। इस काम के लिए उन्होंने कांग्रेस शासन में हुए बड़े भ्रष्टाचार के मामलों का हवाला दिया। 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अन्ना हजारे की निंदनीय भूमिका पहले ही उजागर हो चुकी है जो भाजपा के वृहद भ्रष्टाचार घोटालों पर चुप रहे हैं।
इस फ्रेम में किसी भी कीमत पर जीडीपी वृद्धि भारतीय अभिजात वर्ग की बात करने वाला बिंदु आ गया जो आने वाले व्यवसायिक उछाल को भुनाना चाहता है। सत्तारुढ़ भाजपा ने विशेष प्राथमिकता देते हुए अपने चुनिंदा व्यापारिक घरानों को चरम सीमा पर पहुंचा दिया जबकि अन्य लोगों को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के माध्यम से अपने विवादों को निपटाने के लिए कहा गया। शेष भारत को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत असफल और अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाली एवं खाद्य कूपन की योजना के कीचड़ में लोटने के लिए छोड़ दिया गया था। इस योजना के तहत आज 80 करोड़ भारतीयों को अनाज मिलता है जो भारत के आधे से अधिक हैं।
आज कांग्रेस को और ताकत देने वाला एक ऐसा नेतृत्व है जो राष्ट्र के सामने मौजूद चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार और मजबूत दिख रहा है। राहुल गांधी नेतृत्व की भूमिका में खिल गए हैं और ड्राईविंग सीट पर जंच रहे हैं। वे सही संदेश और संकेत भेज रहे हैं। न्याय यात्रा की कहानियों और अनुभवों को मिलाकर राहुल एक रोमांचक राजनीतिक आख्यान बना रहे हैं जो साहसिक, जमीन से जुड़ा और ताज़ा है।
यह उल्लेखनीय है कि असंख्य बाधाओं के बावजूद राहुल गांधी इस अभियान को किसी भी कड़ुवाहट से दूर रखने में सफल रहे हैं जबकि भाजपा ने अपने संसाधनों को बड़े पैमाने पर राहुल और उनके परिवार को बदनाम करने के कड़ुवाहट भरे और घृणित अभियान पर केंद्रित कर रखा है। राहुल का उभरना यह भी साबित करता है कि राजनीतिक 'पंडितों' पर भरोसे की एक सीमा होती है। उनमें से कुछ उन्हें ऐसी सलाह दे रहे हैं जिन पर सवाल उठ सकते हैं। इनमें से एक ने तो इस बेहद सफल न्याय यात्रा के समय और औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस के इस पुनरुत्थान ने स्वयं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाए जा रहे भाजपा के अभियान को भी पटरी से उतार दिया है। भाजपा ने क्या किया है और अगले पांच वर्षों के लिए क्या करने का वादा करती है, यह बताने के बजाय भाजपा का अभियान इस बात पर केंद्रित है कि कांग्रेस क्या कर रही है या उसकी क्या कथित बुराइयां हैं। अगर पार्टी उस स्लाइड को वापस खींचने के प्रति सावधान नहीं है तो यह खुद के बजाय प्रतिद्वंद्वी के बारे में अधिक बात करने के जाल में फंस जाएगी।
अंत में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस स्पष्ट रूप से कहे या न कहे लेकिन उसने मनमोहन सिंह और उन सभी सुधारों को खारिज कर दिया है जो उन्होंने पेश किए थे। नई कांग्रेस को अपनी विश्वसनीयता बनाने के लिए यह एक आवश्यक शर्त है। आखिरकार मनमोहन सिंह एक नौकरशाह थे जो भले ही अर्थव्यवस्था के उप-समूह में सफल रहे हों लेकिन राजनीति के सुपर सेट में बुरी तरह विफल रहे थे। आर्थिक सुधार एक माध्यम है जबकि राजनीति एक दर्शन है।
किसी भी माध्यम का कुशल उपयोग इस बात की समझ के अभाव में खतरनाक है कि इसका उपयोग क्यों किया जा रहा है और यह कहां ले जाएगा। आज की कांग्रेस के लिए यह सेवानिवृत्त नौकरशाहों से दूर रहने की चेतावनी होनी चाहिए। उसे भ्रष्टाचार रोकने के लिए पैनी नजर रखनी होगी। चाहे वह सत्ता में हो या न हो, लेकिन कांग्रेस को एक टीम बनाने के लिए अधिक युवा नेतृत्व और प्रतिबद्ध लोगों की आवश्यकता होगी ताकि पार्टी जीवंत रह सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)